गुलज़ार में एक फूल भी ख़ंदाँ तो नहीं है कुछ और है ये दौर-ए-बहाराँ तो नहीं है है चाक-ब-दामाँ ही तू ऐ लाला-ए-ख़ुद-सर गुल तेरी तरह दाग़-ब-दामाँ तो नहीं है अच्छा ही हुआ डूब गया मेरा सफ़ीना अब कश्मकश-ए-साहिल-ओ-तूफ़ाँ तो नहीं है तक़दीर की बात और है वर्ना दिल-ए-मुज़्तर उम्मीद के बर आने का इम्काँ तो नहीं है इस बार-ए-गराँ का है उठाना बहुत आसाँ ग़म है किसी कम-ज़र्फ़ का एहसाँ तो नहीं है पामाल करे क्यूँ कोई बे-दर्द कि सब्ज़ा बेगाना सही नंग-ए-गुलिस्ताँ तो नहीं है क़ीमत मिरे आँसू की फ़क़त एक तबस्सुम शबनम की तरह ये कोई अर्ज़ां तो नहीं है क्यूँ मुझ पे नज़र है तिरी ऐ गर्दिश-ए-दौराँ हस्ती मिरी दुनिया में नुमायाँ तो नहीं है कुछ दाग़ हैं कुछ ज़ख़्म हैं 'फ़ाज़िल' के जिगर में मुफ़लिस है मगर बे-सर-ओ-सामाँ तो नहीं है