ऊँची नीची दूब पर लहराता हुआ काला नाग झील के बाँहों से फूटता हुआ ज्वालामुखी रंग-बिरंगे पंछी को पंजों में दबाए हुए बाज़ चट्टानों के पीछे मुर्दा जानवर की साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ ठिठुरी पर भागते हुए सियाह चूहों की क़तार चाँदनी रात में मछली पर झपटता हुआ ऊद-बिलाव पतिंगे को पकड़ने के लिए लपकती हुई छिपकिली सुरमई शाम के मल्गजे आकाश पर चढ़ती हुई आँधी ये सारे मनाज़िर महा-नगर के एक कमरे में वीडियो पर देख रहा हूँ और अहद-ए-हजर के अपने बुज़ुर्गों के फ़ितरी ख़ौफ़-ओ-तजस्सुस से भरे हुए इम्बिसात को अपनी रगों से सरगोशियाँ करते हुए पा रहा हूँ