आबले होंगे वो झट फूट के बहने वाले हम शजर जैसे हैं हर चोट को सहने वाले कूक कोयल की न चिड़ियों की चहक सुनते हैं कितने बद-बख़्त हैं ये शहर में रहने वाले सोच कर फेंकना इक दूजे पे पत्थर यारो हम सभी काँच के महलों में हैं रहने वाले सुन के इस कान से उस कान के बाहर कर दो कुछ बुरी बात अगर कहते हैं कहने वाले अर्श पर कब तक उड़ेंगे ये ज़मीं के पंछी इक न इक रोज़ तो हैं फ़र्श पे ढहने वाले दूर से आ के तो सब दोस्त हैं अक्सर मिलते मुद्दतों दिखते नहीं पास में रहने वाले शे'र कहने का तिरा ढंग निराला है 'सदा' वर्ना शा'इर हैं बहुत बहर में कहने वाले