आँचल में नज़र आती हैं कुछ और सी आँखें छा जाती हैं एहसास पे बिल्लोर सी आँखें रहती है शब-ओ-रोज़ में बारिश सी तिरी याद ख़्वाबों में उतर जाती हैं घनघोर सी आँखें पैमाने से पैमाने तलक बादा-ए-लालीं आग़ाज़ से अंजाम तलक दौर सी आँखें ले कर कहाँ रहती रही मोती सी वो सूरत ले कर कहाँ फिरता रहा में गोर सी आँखें वक़्त आने पे आई न नज़र गर्दिश-ए-अफ़्लाक बैठा रहा ले कर मैं किसी और सी आँखें तब्दीली तिरे देखते रहने से ये आई बिन बैठीं तसलसुल से तिरे तूर सी आँखें बिल-फ़र्ज़ निकल जाऊँ किसी अंधे सफ़र पर बाँधे हुए रखती हैं मुझे डोर सी आँखें हर बार किनारे से लगा कर चली जाएँ धुंदलाहटों में ग़मज़ा-ए-फ़िलफ़ौर सी आँखें क्या जाने 'नवेद' और ही कर जाएँ उजाला क़िर्तास-ए-फ़रोज़ाँ पे तिरी कोर सी आँखें