आदमी ख़ुद को भला कैसे बचा ले जाएगा जिस जगह मरना है उस को हादिसा ले जाएगा मैं अगर तूफ़ान से बच भी गया तो क्या हुआ मेरी कश्ती को भँवर में ना-ख़ुदा ले जाएगा आज फिर ज़ख़्म-ए-जिगर ताज़ा है पहले की तरह आज फिर मुझ को तिरा ग़म मय-कदा ले जाएगा आड़ में तफ़रीह की तुम छोड़ दो अय्याशियाँ वर्ना फिर पानी समुंदर का बहा ले जाएगा आदमी के साथ जाएँगे फ़क़त उस के अमल और अपने साथ वो दुनिया से क्या ले जाएगा किस लिए फ़रियाद ले के जाऊँ मैं मुंसिफ़ के पास जब सितमगर अपने हक़ में फ़ैसला ले जाएगा सोच ऐ इंसाँ तिरी हस्ती की है कितनी बिसात तुझ को जब तूफ़ाँ का इक झोंका उड़ा ले जाएगा उस के सर पे आफ़ियत का साएबाँ होगा ज़रूर साथ जो ख़ंजर बुज़ुर्गों की दुआ ले जाएगा