आमद-ए-यार की आई जो ख़बर हौले से खुल गए मेरी तमन्नाओं के पर हौले से एक तूफ़ान उठाए हुए बैठा है यहाँ वो मिरे दिल में गया था जो उतर हौले से शोर क्यूँकर तू मचाता है मसीहा ये बता देख बीमार गया है तिरा मर हौले से राख समझे है मोहब्बत को ये दुनिया जो कभी रक़्स करता है कहीं कोई शरर हौले से काश मिल जाए मुझे मेरी दुआओं का सिला काश खुल जाए किसी रोज़ वो दर हौले से क्या हुआ है कि तिरे ब'अद मह-ओ-साल मिरे बिन छुए ही मुझे जाते हैं गुज़र हौले से राह दुश्वार सही साथ तुम्हारा हो अगर यार कट जाएगा साँसों का सफ़र हौले से ख़ार तब से ही नज़र में है सभी की 'अफ़ज़ल' आप ने जब से है की उस पे नज़र हौले से