आओ तो बहल जाए मेरा दिल-ए-दीवाना गुलशन है बहाराँ है लबरेज़ है पैमाना जब ग़ौर से सुनते हैं वो इश्क़ का अफ़्साना किस तरह मचलता है मेरा दिल-ए-दीवाना आँख उठने लगी तेरी और शर्म ज़रा कम हो शीशे में दिखा दूँगा फिर तुझ को परी-ख़ाना इस शोख़-निगाही की तारीफ़ नहीं मुमकिन लड़ती है नज़र जिस से बन जाती है बेगाना ये अब्र शफ़क़-आगूँ ये सर्द हवा साक़ी इक और सुराही ला इक और दे पैमाना आशिक़ का अभी रुत्बा समझा ही नहीं तू ने देखने में है दीवाना मतलब का है फ़रज़ाना वो बज़्म में आ बैठे अब शम्अ' बुझा दीजे मरने को वो आता है परवाने पे परवाना 'शंकर' की ग़ज़ल सुन कर तारीफ़ करो दिल से सब साँचे में ढलते हैं ये क़ौल-ए-हकीमाना