आप गर्दां हैं हरम में हम हरीम-ए-यार में फ़र्क़ क्या है शैख़ साहिब मोमिन-ओ-कुफ़्फ़ार में शेख़-ओ-पण्डित क्या दिखाएँगे हमें राह-ए-नजात इक असीर-ए-तौक़-ए-तस्बीह क़ैद इक ज़ुन्नार में पाक-बाज़ी है बड़ी तौहीन-ए-रहमत शैख़ जी कीजिए कुछ तो ख़ता गर है यक़ीं ग़फ़्फ़ार में छीन लेना या-ख़ुदा मुझ से मिरे लौह-ओ-क़लम गर ज़वाल आए मिरे अश'आर के मेआ'र में तुम ने तो का'बे में भी देखा नहीं वाइज़ उसे हम को आता है नज़र वो सूरत-ए-दिलदार में चश्म-दीद उस के हज़ारों और गवाह इक भी नहीं सामने सब के हुआ था क़त्ल कल बाज़ार में जुर्म पे क़ाबू किया हम ने नई तरकीब से अब बुरी ख़बरें नहीं छपतीं किसी अख़बार में सरफिरा कोई बना है नाज़िम-ए-गुलशन 'सदा' हुक्म है इक रंग के बस गुल खिलें गुलज़ार में