आप की सोच से ज़ियादा था एक दिन मेरे पास इतना था पहली हरकत से बन गई थी बात पहली हरकत से नक़्श उभरा था मुझ को शोहरत मिली बग़ावत से वर्ना मैं भी ग़ुलाम होता था बोलना आया बा'द में मुझ को पहले आवाज़ को मैं सुनता था रौशनी फूटने लगी मुझ से तेरी मिन्नत का जुगनू पकड़ा था 'अक्स से रेत बन के निकला हूँ आइने का मैं कुछ तो लगता था लोग बेदार हो गए वर्ना बंद कमरे में किस ने सोना था रात उस उस को सब्ज़ ख़्वाब आए सुब्ह जिस जिस ने बीज बोना था उस जगह पर कोई नहीं था मगर आप ने कह दिया लिहाज़ा था