आसमानों से ज़मीनों पे जवाब आएगा एक दिन रात ढले यौम-ए-हिसाब आएगा मुतमइन ऐसे कि हर गाम यही सोचते हैं इस सफ़र में कोई सहरा न सराब आएगा ये जवानी तो बुढ़ापे की तरह गुज़रेगी उम्र जब काट चुकूँगा तो शबाब आएगा कब मिरी आँखों में ख़ूँ-रंग किरन उतरेगी रात की शाख़ पे कब अक्स-ए-गुलाब आएगा ज़र्द मिट्टी में घुली सब्ज़ तवानाई 'नजीब' अब ज़रा आँख लगी है तो ये ख़्वाब आएगा