अब दर्द का सूरज कभी ढलता ही नहीं है
By akhtar-lakhnviOctober 24, 2020
अब दर्द का सूरज कभी ढलता ही नहीं है
अब दिल कोई पहलू हो सँभलता ही नहीं है
बेचैन किए रहती है जिस की तलब-ए-दीद
अब बाम पे वो चाँद निकलता ही नहीं है
इक उम्र से दुनिया का है बस एक ही आलम
ये क्या कि फ़लक रंग बदलता ही नहीं है
नाकाम रहा उन की निगाहों का फ़ुसूँ भी
इस वक़्त तो जादू कोई चलता ही नहीं है
जज़्बे की कड़ी धूप हो तो क्या नहीं मुमकिन
ये किस ने कहा संग पिघलता ही नहीं है
अब दिल कोई पहलू हो सँभलता ही नहीं है
बेचैन किए रहती है जिस की तलब-ए-दीद
अब बाम पे वो चाँद निकलता ही नहीं है
इक उम्र से दुनिया का है बस एक ही आलम
ये क्या कि फ़लक रंग बदलता ही नहीं है
नाकाम रहा उन की निगाहों का फ़ुसूँ भी
इस वक़्त तो जादू कोई चलता ही नहीं है
जज़्बे की कड़ी धूप हो तो क्या नहीं मुमकिन
ये किस ने कहा संग पिघलता ही नहीं है
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