अब वो कहते हैं मुद्दआ कहिए सोचता हूँ कि 'नक़्श' क्या कहिए ज़िंदगी ज़िंदगी से रूठ गई हाए अब किस को आश्ना कहिए है तग़ाफ़ुल का क्यूँ गिला उन से आह-ए-सोज़ाँ को ना-रसा कहिए अपनी कश्ती तो डूब ही जाती अज़्म-ए-मोहकम को नाख़ुदा कहिए थरथराहट हया की उस रुख़ पर रक़्स-ए-नैरंगी-ए-सबा कहिए खोई खोई हैं धड़कनें दिल की फिर मोहब्बत की इब्तिदा कहिए इत्तिफ़ाक़न ये आप का मिलना एक रंगीन हादसा कहिए ना-शनास-ए-अलम हो जो हस्ती सच तो ये है कि बे-मज़ा कहिए दुश्मन-ए-जाँ तो दुश्मन-ए-जाँ है ग़मगुसारों को 'नक़्श' क्या कहिए