ऐ दस्त-ए-इख़्तियार दर-ए-इंकिशाफ़ खोल देखें तो क्या छुपा है बदन का ग़िलाफ़ खोल वो छेद जिस को भरते हुए दश्त लग गए दरिया से कह रहा हूँ वही फिर शिगाफ़ खोल तुझ को ख़बर नहीं है बग़ावत के ज़ह्र की इक बार ये महाज़ तू अपने ख़िलाफ़ खोल शाहा ज़बान-ए-ख़ल्क़ है नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा तुझ को कभी करेगी नहीं ये मुआ'फ़ खोल मुझ को न बाँध वक़्त की ममनूअा शाख़ से मैं ही तिरे वजूद का हूँ ए'तिराफ़ खोल वो राज़ जिस बिना पे बनी है ये काएनात दुनिया से कर न जाएँ सभी इंहिराफ़ खोल लहजों में गाँठ पड़ने से पहले मिरे ग़नीम हम जिस पे लड़ रहे थे वही इख़्तिलाफ़ खोल नैरंगी-ए-बदन से बंधी है नज़ारगी मुझ कोर-चश्म पर भी कोई कोह-ए-क़ाफ़ खोल तख़रीब कह रही है सक़ाफ़त की दास्तान तफ़्सील चाहिए तो चमन का लिहाफ़ खोल फूलों पे बंद हैं तिरी आमद के दर 'मुनीर' ख़ुशबू के इल्तिमास पे अपना तवाफ़ खोल