अपने साए से बद-गुमाँ क्यों है आज हर शख़्स बे-अमाँ क्यों है ज़िंदगी है अगर पस-ए-मंज़र मंज़रों में धुआँ धुआँ क्यों है क्या हुआ आज ख़ून के बदले आग दिल में रवाँ-दवाँ क्यों है ज़िंदगी बोझ है तो जीने का हौसला दिल में नौजवाँ क्यों है बंदगी है अगर बताओ तो इश्क़ में इस क़दर ज़ियाँ क्यों है जब कि मैं ख़ूब-रू नहीं फिर भी आइना मुझ से बद-गुमाँ क्यों है मुत्तहिद हैं अगर तो फिर इतना फ़ासला अपने दरमियाँ क्यों है ज़र्रे ज़र्रे में नूर है उस का वो अयाँ है तो फिर निहाँ क्यों है दिल अगर ग़म-ज़दा नहीं 'नाज़िम' अश्क आँखों से फिर रवाँ क्यों है