अपनी हद तक आ पहुँचे अब हिजरी दौर को लाएँ 'अहद-ए-नौ का ये है तक़ाज़ा ख़ुद को हम दोहराएँ कौन सी ये मंज़िल है मुड़ कर देखें पथरा जाएँ आगे बढ़ें कुछ और तो जंगल आसेबों का पाएँ एक ही जैसे सब के चेहरे एक ही जैसा हाल किस की ज़रूरत है दुनिया को किस को बचा कर लाएँ अपनी फ़ितरत कैसे बदली कैसे गुज़ारी 'उम्र जाने वाले कम से कम इतना तो बताते जाएँ तीर चलें बर्फ़ीले कम हो सूरज का जब ताप दिन जब छोटे होने लगें तो रातें बढ़ती जाएँ