अपनी ख़ातिर सितम ईजाद भी हम करते हैं और फिर नाला-ओ-फ़रियाद भी हम करते हैं एक दुनिया मिरी आबाद है जिन से वही ख़्वाब कभी पसपा कभी बर्बाद भी हम करते हैं ख़ाना-ए-जिस्म में हंगामा मचा रक्खा है ले मिरी जाँ तुझे आज़ाद भी हम करते हैं अपने अहबाब पे करते हैं दिल ओ जान निसार और अक्सर उन्हें ना-शाद भी हम करते हैं रंज-ए-उल्फ़त के सिवा ऐ दिल-ए-नादान बता था कोई रंज जिसे याद भी हम करते हैं और भी लोग हैं इस कार-ए-ज़ियाँ में हम-राह सो इन अशआर को इरशाद भी हम करते हैं