बार-ए-ग़म-ए-हयात को सर पर समेट कर ऐ दोस्त फेंक आया हूँ यकसर समेट कर बेज़ार ज़िंदगी से ये कर देगी एक दिन रखना ज़रूरियात की चादर समेट कर माँगे है बूँद बूँद समंदर से अब वही रखता था कल तलक जो समंदर समेट कर बाद-ए-ख़िज़ाँ ने बाग़ को ताराज कर दिया सब ले गई बहार का मंज़र समेट कर जी चाहता है आप के दामन में डाल दूँ लाया हूँ जो चमन से गुल-ए-तर समेट कर सरमाया-ए-हयात है 'शादाँ' मिरे लिए रक्खा है उस की याद को अन्दर समेट कर