बारिश रुकी वबाओं का बादल भी छट गया ऐसी चलें हवाएँ कि मौसम पलट गया पत्थर पे गिर के आईना टुकड़ों में बट गया कितना मिरे वजूद का पैकर सिमट गया कटता नहीं है सर्द-ओ-सियह-रात का पहाड़ सूरज था सख़्त धूप थी दिन फिर भी कट गया छालें शजर शजर से उतरने को आ गईं बोसीदा पैरहन हुआ इतना कि फट गया तलवार बे-यक़ीनी के हाथों में आ गई अपने मुक़ाबले में हर इक शख़्स डट गया जब तक न छू के देखा था वुसअ'त थी आप में देखा तो छूई-मूई का पौदा सिमट गया साया था भागता था बहुत मेरी धूप से वो शख़्स कि जो मेरे गले से चिमट गया