बेड़ी ये मिरे पाँव में पहना तो रहे हो फिर अह्द-ए-ख़ुदी तोड़ के तुम जा तो रहे हो पलकों की मुंडेरों पे परिंदों को उड़ाओ तस्लीम किया तुम मुझे समझा तो रहे हो पछतावा न हो कल ये क़दम सोच के लेना जज़्बात में उल्फ़त की क़सम खा तो रहे हो समझाया था कल कितना मगर बाज़ न आए क्या होगा अभी माना कि पछता तो रहे हो रहने भी अभी दीजिए अश्कों का तकल्लुफ़ जब जानते हो दिल पे सितम ढा तो रहे हो अब एक नए तर्ज़-ए-रिफ़ाक़त पे अमल हो तुम बीच में लोगों के भी तन्हा तो रहे हो कल ठोकरों में जग की कहीं छोड़ न देना इक दर्द-ज़दा शख़्स को अपना तो रहे हो इंसान कभी रिज़्क़ से भी सैर हुआ है तक़दीर में था जितना लिखा पा तो रहे हो इस में भी कोई रम्ज़ कोई फ़ल्सफ़ा होगा 'हसरत' जी अभी झूम के तुम गा तो रहे हो