बुलबुल के नग़्मे ख़ुशबू के चर्चे हवा हुए मौसम बदल गया है वो जब से जुदा हुए मिलते नहीं हैं फूलों में अब तितलियों के रंग बचपन में जाने सोच के क्या हम फ़िदा हुए तुम को कमान खींचना आया न आज तक तरकश में जितने तीर थे सारे ख़ता हुए हम को तो एक एक क़सम अपनी याद है गिन के बताओ वा'दे जो तुम से वफ़ा हुए वक़्त-ए-दुआ है माँगो दुआ कारवाँ की ख़ैर वाक़िफ़ नहीं जो राह से वो रहनुमा हुए ख़ुश आएगा न तुम को सनम पूजना कभी पत्थर तुम्हारे शहर के सारे ख़ुदा हुए मंज़िल के जब निशाँ नज़र आने लगे 'जमाल' हर हर क़दम पे शुक्र के सज्दे अदा हुए