बुरे लोगों की रूहें यूँ फ़रिश्ता खींच लेता है कि जैसे कोई काँटों पर से कपड़ा खींच लेता है उसी हमदर्द पर लगती है अक्सर क़त्ल की तोहमत कि जो मक़्तूल के सीने से नेज़ा खींच लेता है जिसे इस्कूल की हल्की किताबें बोझ लगती थीं वो अब मजबूर हो कर भारी रिक्शा खींच लेता है मैं जब भी कोशिशें करता हूँ ऊँचाई पे चढ़ने की मिरा अपना ही कोई पैर मेरा खींच लेता है फ़न-ए-अशआ'र भी इक तरह की फ़ोटोग्राफ़ी है सुख़नवर शे'र में हर ग़म का नक़्शा खींच लेता है मुझे दीदार से भी बढ़ के आता है मज़ा इस में वो मारे शर्म के जब रुख़ पे पर्दा खींच लेता है 'नबील' इस शायरी के शौक़ को आसान मत समझो रगों से ये लहू का क़तरा-क़तरा खींच लेता है