चलता रहा हूँ और जुनूँ कम नहीं किया रस्तों ने भी सुराग़ फ़राहम नहीं किया मुद्दत से खेत आँख के बंजर पड़े हैं दोस्त बरसों से तेरे ग़म ने मुझे नम नहीं किया ये क्या कि लौट आया हूँ सहरा से ख़ाली हाथ और मुझ पे मेरे क़ैस ने कुछ दम नहीं किया दोनों की अपनी अपनी जगह है वजूद में मैं ने दिमाग़-ओ-दिल को कभी ज़म नहीं किया ख़ैरात हुस्न की हमें टुकड़ों में दी गई ये कार-ए-ख़ैर आप ने पैहम नहीं किया उस को भुलाए जाता हूँ तरतीब से 'रज़ा' ये काम मैं ने हिज्र में यक-दम नहीं किया