दामन भर उजियाले थे ना रात ने जुगनू पाले थे ना सिक्के मेरी क़िस्मत वाले तुम ने ठीक उछाले थे ना हम तो ख़ैर दिवाने ठहरे तुम तो बूझने वाले थे ना दिल में हश्र का 'आलम था तो लब पर ज़ब्त के ताले थे ना टूट गए सो बात अलग है ख़्वाब भी हुर्मत वाले थे ना चुभना 'साग़र' क़िस्मत ठहरी आँख में शीशे पाले थे ना