दर्स-ए-आराम मेरे ज़ौक़-ए-सफ़र ने न दिया मुझ को मंज़िल पे भी ज़ालिम ने ठहरने न दिया रक़्स करती रही तूफ़ान में कश्ती मेरी मेरी हिम्मत ने मुझे पार उतरने न दिया ज़िंदगी मौत से बद-तर थी पर ऐ वा'दा-ए-दोस्त लज़्ज़त-ए-कश्मकश-ए-शौक़ ने मरने न दिया मुल्तफ़ित कल नज़र आती थीं निगाहें उन की कहीं धोका तो मुझे मेरी नज़र ने न दिया यूँ तो रहने को परेशानी-ए-ख़ातिर ही रही तेरी ज़ुल्फ़ों को मगर मैं ने बिखरने न दिया फूल तो फूल थे ऐ ख़ाना-बर-अंदाज़-ए-चमन तू ने काँटों से भी दामन मुझे भरने न दिया इन्हीं अल्फ़ाज़ में है मेरी कहानी 'अफ़ज़ल' ग़म ने जीने न दिया शौक़ ने मरने न दिया