दस्तरस में अगर न आऊँ तो फिर ख़ाक बन कर मैं उड़ ही जाऊँ तो फिर तुम को फ़ुर्सत नहीं है मेरे लिए मैं भी रस्तों में खो ही जाऊँ तो फिर मेरे ग़म पर जो हँस रहे हो तुम मैं भी यूँही तुम्हें सताऊँ तो फिर इश्क़ के चर्चे में है रुस्वाई ये कहानी ज़बाँ पे लाऊँ तो फिर आबला-पा है 'रूबी' तेरी तरह थक गए गर ये मेरे पाँव तो फिर