दयार-ए-ग़म से हम बाहर निकल के शेर कहते हैं

By balmohan-pandayOctober 28, 2020
दयार-ए-ग़म से हम बाहर निकल के शेर कहते हैं
मसाइल हैं बहुत से उन में ढल के शेर कहते हैं
दहकते आग के शो'लों पे चल के शेर कहते हैं
हमें पहचान लीजे हम ग़ज़ल के शेर कहते हैं


रिवायत के पुजारी इस लिए नाराज़ हैं हम से
ख़ता ये है नए रस्तों पे चल के शेर कहते हैं
हमें तन्हाइयों का शोर जब बेचैन करता है
इकट्ठी करते हैं यादें ग़ज़ल के शेर कहते हैं


सितारों की तरह रौशन हैं जिन के लफ़्ज़ ज़ेहनों में
वो शायद मोम की सूरत पिघल के शेर कहते हैं
हमारी शाइ'री उस को कहीं रुस्वा न कर डाले
सो उस के शहर में थोड़ा सँभल के शेर कहते


46920 viewsghazalHindi