देखने वाले की आँखों का गुमाँ होता है रेत पर वर्ना कहाँ आब-ए-रवाँ होता है इस उदासी में तिरे जिस्म का नौ-ख़ेज़ गुलाब जैसे सहरा में कोई मीठा कुआँ होता है प्यार का फूल हर इक दौर में ताज़ा ही रहे रुख़ बदलता भी है दरिया तो रवाँ होता है बख़्त की नींद बुझाने की घड़ी आती है ख़्वाब का तख़्त उलटता है धुआँ होता है बाज़ औक़ात बदन ओढ़ के डर जाता हूँ मुझ को मल्बूस में भी तेरा गुमाँ होता है अपनी छाँव में मुझे बैठने देता ही नहीं पेड़ जो भी मिरे पहलू में जवाँ होता है इस का मतलब कि यहाँ ग़म की कोई क़द्र नहीं जिस को भी देखो वही महव-ए-फ़ुग़ाँ होता है लेट जाता हूँ रिवायात की दीवार के साथ लोग कहते हैं यहाँ इश्क़ जवाँ होता है ख़ामुशी छोड़ गई कैसी नमी होंटों पर लफ़्ज़ की आग जलाता हूँ धुआँ होता है हुस्न हर रंग में तहसीन के लाएक़ है 'मुनीर' पेड़ सूखा हो तो इबरत का निशाँ होता है