दिल है वीरान बयाबाँ की तरह गोशा-ए-शहर-ए-ख़मोशाँ की तरह हाए वो जिस्म तह-ए-ख़ाक है आज जिस ने रक्खा था हमें जाँ की तरह साहब-ए-ख़ाना समझते थे जिसे चल दिया घर से वो मेहमाँ की तरह चाँद सूरज का गुमाँ था जिस पर बुझ गया शम-ए-शबिस्ताँ की तरह साया-ए-आतिफ़त अब सर पे नहीं साया-ए-अब्र-ए-गुरेज़ाँ की तरह है अगर अपना मुक़द्दर भी तो है तंग बस तंगी-ए-दामाँ की तरह