दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ अपने दीवाने का अहवाल तू ज़ंजीर से पूछ मेरी जाँ-बाज़ी के जौहर नहीं रौशन तुझ पर कुछ खुले हैं तिरी शमशीर पे शमशीर से पूछ पुर्सिश-ए-हाल को जाती है कहाँ ऐ लैला क़ैस की शक्ल है क्या क़ैस की तस्वीर से पूछ वाक़िफ़-ए-राज़ नहीं पीर-ए-मुग़ाँ सा कोई है दिला पूछना जो कुछ तुझे उस पीर से पूछ वाक़िफ़-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार नहीं हर कोई क्या मज़ा ग़म में है ये आशिक़-ए-दिल-गीर से पूछ गर्मी-ए-शौक़ नहीं है तो दहन में ऐ शम्अ किस लिए तेरी ज़बाँ लेता है गुल-गीर से पूछ उल्टी क्यूँ पड़ती है तदबीर ये हम क्या जानें कौन उलट देता है इस राज़ को तदबीर से पूछ मुझ से ऐ दावर-ए-महशर है ये पुर्सिश कैसी पूछना है तुझे जो कुछ मिरी तक़दीर से पूछ यूँ तो उस्ताद-ए-फ़न-ए-शेर बहुत से गुज़रे किस को कहते हैं ग़ज़ल-गोई 'असर' 'मीर' से पूछ