एक दस्तक पे ये दरवाज़ा खुला भी कुछ देर कोई आया दिल-ए-वीराँ में रुका भी कुछ देर मेरी आवाज़ पे पल्टा भी वो आँखें भी थीं नम जाते जाते मिरे सीना से लगा भी कुछ देर इतना पास आ कि मिरी साँसों में ख़ुशबू भर जाए ख़्वाब की तरह मिरी आँखों में आ भी कुछ देर जिस्म सिमटे तो लगा नब्ज़ न थम जाए कहीं साँस रुक जाने का धड़का सा हुआ भी कुछ देर वक़्त-ए-रुख़्सत था फ़ज़ा में भी तिरे हिज्र का दुख आँसुओं से मिरे भीगी थी सबा भी कुछ देर