इक ख़ता बारहा नहीं करते अब किसी से वफ़ा नहीं करते हम से उम्मीद क्या वो रखते हैं हम कोई मो'जिज़ा नहीं करते इश्क़ करते हैं आज भी लेकिन वस्ल की अब दुआ नहीं करते क्यों वो हम को सँवार देता है हम उजड़ने को क्या नहीं करते हम भी शिकवे छुपा के रखते हैं वो भी हम से गिला नहीं करते याद रखना तुम इस ज़माने में यार हम से मिला नहीं करते तुम भी 'अफ़रंग' ज़ख़्म दे लो हमें हम किसी को ख़फ़ा नहीं करते