एक नग़्मा इक तारा एक ग़ुंचा एक जाम ऐ ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-दौराँ तुझे मेरा सलाम ज़ुल्फ़ आवारा गरेबाँ चाक घबराई नज़र इन दिनों ये है जहाँ में ज़िंदगानी का निज़ाम चंद तारे टूट कर दामन में मेरे आ गिरे मैं ने पूछा था सितारों से तिरे ग़म का मक़ाम कह रहे हैं चंद बिछड़े रहरवों के नक़्श-ए-पा हम करेंगे इंक़लाब-ए-जुस्तुजू का एहतिमाम पड़ गईं पैराहन-ए-सुब्ह-ए-चमन पर सिलवटें याद आ कर रह गई है बे-ख़ुदी की एक शाम तेरी इस्मत हो कि हो मेरे हुनर की चाँदनी वक़्त के बाज़ार में हर चीज़ के लगते हैं दाम हम बनाएँगे यहाँ 'साग़र' नई तस्वीर-ए-शौक़ हम तख़य्युल के मुजद्दिद हम तसव्वुर के इमाम