इक सहारे पे जो सब बैठा हो हारे जैसे यार लगते हो बशर तुम भी हमारे जैसे न करेंगे कोई शिकवा न तक़ाज़ा तुम से होते होते हुए लो हम भी तुम्हारे जैसे तू ने दी है ये मुझे कैसी हसीं बे-रंगी साँझ के बाल कोई रात सँवारे जैसे ज़िंदगी क्या है नहीं तुझ को ज़रा भी ये ख़बर ज़िंदगी दरिया है और सब हैं किनारे जैसे फ़िक्र होती है भरे दिल से जो देखूँ तुझ को कोई सोते हुए बच्चे को निहारे जैसे तू जो है ही नहीं क्यों तुझ को बनाऊँ वैसा मुंतज़िर शब का तके दिन में सितारे जैसे