एक शय को हज़ार कौन करे मैं को हम में शुमार कौन करे इस जहाँ की गिरानियाँ तौबा सर पे इन को सवार कौन करे फिर बहाराँ है फिर गुल-ए-उम्मीद दिल को फिर बे-क़रार कौन करे ज़िंदा रहना यहाँ ग़नीमत है इस ख़राबे में प्यार कौन करे गर्दिश-ए-वक़्त ले गया वो साथ फिर यहाँ इंतिज़ार कौन करे