इक उम्र से दिल में है निहाँ चाह किसी की वो देखते बैठे हैं अभी राह किसी की औरों को सताने से तिरे हाथ उठा ले डर है कि न लग जाए तुझे आह किसी की रक्खा न करो दौलत-ए-दुनिया पे भरोसा ये गाह तुम्हारी है तो है गाह किसी की गिर्दाब-ए-हवादिस से उभरना नहीं मुश्किल ले डूबती है हिम्मत-ए-कोताह किसी की है क़हर-ए-इलाही का सबब किब्र किसी का है वज्ह-ए-तबाही हवस-ए-जाह किसी की ऐ माह-ए-मुनव्वर रुख़-ए-रौशन है किसी का ऐ काहकशाँ तू है गुज़रगाह किसी की माँगा है सलीक़े से भी 'बरतर' कभी तुम ने कहते हो कि सुनता नहीं अल्लाह किसी की