ग़लत बताते हो तुम सलफ़ की शुजाअतें सब तो आओ दरिया में ग़र्क़ कर दें हिकायतें सब ये सोचता हूँ मैं पढ़ रहा हूँ किताब कैसी धुआँ धुआँ हैं लबों को छूकर इबारतें सब निज़ाम-ए-इंसाफ़-ओ-अदल पर ये न जाने कैसा ज़वाल आया बरहना हो कर सिसक रही हैं सदाक़तें सब जो फ़न को बकवास कहने वाले सुनाईं ग़ज़लें गिरो कहीं जा के तुम भी रख दो समाअ'तें सब चलो कि हम भी मुराजअ'त के बहाने ढूँडें यक़ीं को पामाल कर चुकी हैं मसाफ़तें सब बुलंदियों के सफ़र की मुझ को न दाद दीजिए हैं सल्ब मेरे दिमाग़-ओ-बाज़ू की ताक़तें सब जो लुत्फ़ लेना है मश्क़-नवाई की इंतिहा का उभारो ख़ुद में मिरे क़बीले की आदतें सब ये किस ने उन को क़लम का अपने हदफ़ बनाया वक़ार खोने लगी हैं 'असलम' अलामतें सब