गाता रहा है दूर कोई हीर रात भर मैं देखता रहा तिरी तस्वीर रात भर तारों के टूटने की सदा गूँजती रही होती रही है रात की तश्हीर रात भर सूरज ने सुब्ह-दम मिरे पाँव में डाल दी मैं तोड़ता रहा हूँ जो ज़ंजीर रात भर मैं ख़ामुशी में डूब के कुछ सोचता रहा कुछ बोलती रही तिरी तस्वीर रात भर मैं चल पड़ा तो कट के वो क़दमों में आ गिरी लटकी है मेरे सर पे जो शमशीर रात भर मैं सो गया 'रशीद' तो हाला बिखर गया सूझी न कोई चाँद को तदबीर रात भर