ग़म-ए-इश्क़ तू ही बता मुझे है ये क्या मक़ाम ख़बर नहीं यहाँ दर्द-ए-दिल की दवा नहीं यहाँ शाम-ए-ग़म की सहर नहीं है ये जाने कैसा अजब जहाँ यहाँ राज करती हैं पस्तियाँ यहाँ बे-ग़रज़ कोई दिल नहीं न हवस हो जिस में वो सर नहीं तुझे कैसे राह पे लाऊँ मैं तुझे कैसे अपना बनाऊँ मैं कोई मुझ में ऐसी अदा नहीं कोई ऐसा मुझ में हुनर नहीं मैं अजीब ख़ाना-ब-दोश हूँ मैं किसी का हूँ न कोई मिरा मैं भटक रहा हूँ यहाँ वहाँ कोई दर नहीं कोई घर नहीं