ग़म यूँ दिन-रात का दस्तूर नहीं था उस वक़्त मैं किसी रंज से मा'ज़ूर नहीं था उस वक़्त मेरे बालों में भी उस वक़्त सफ़ेदी नहीं थी माँग में तेरी भी सिंदूर नहीं था उस वक़्त तू भी तब घर के मसाइल से परेशान न थी मैं भी हालात से मजबूर नहीं था उस वक़्त कितने बे-ख़ौफ़ थे तेरा भी बहुत नाम न था मैं भी इस शहर में मशहूर नहीं था उस वक़्त कोरे अल्फ़ाज़ थे शे'रों में मआ'नी ही न थे मेरी ग़ज़लों में तिरा नूर नहीं था उस वक़्त