गुम-सुम बैठा सोच रहा हूँ दिल में एक जुनून भरे कितनी बेचैनी देते हैं वो दो नैन सुकून भरे आ सकते हो देखनी हो गर वीराने में शादाबी मेरे अंदर सहरा हैं और सहरा भी ज़ैतून भरे क़दम क़दम पर क़ुर्बानी दे क़दम क़दम पर दुख झेले हर रिश्ते की गोद में कितनी ख़ुशियाँ इक ख़ातून भरे याद किसी की भर देती है एक ख़ुमार सा आँखों में क़ुर्ब किसी का जैसे मेरी रग-रग में अफ़यून भरे दिल की बात किसी को समझाने की ख़ातिर ग़ज़लों में कैसे कैसे शेर कहे हैं और क्या क्या मज़मून भरे रंगों में 'शहबाज़' ख़ुशी का रंग नुमायाँ था उस पर मेरी सालगिरह पर जिस ने साँसों से बैलून भरे आज उसे 'शहबाज़' हमारे दुख-सुख का एहसास नहीं पहले पहले ख़त लिखती थी वो जो हम को ख़ून भरे