हालाँकि कम नहीं जो मिरे आस-पास हैं किन से निभाई जाए कि हम किन को रास हैं तुम क्या गए कि हाए ज़माने गुज़र गए घर के ये बाम-ओ-दर हैं कि अब तक उदास हैं हम ख़ूब जानते हैं बनावट मिज़ाज की अहबाब सोचते हैं कि हम बद-हवास हैं हम भाँपते हैं नुक़्ता-ए-बातिल में मुद्द'आ तेरे ख़ुतूत में तो कई इक़्तिबास हैं वो ढूँडते फिरेंगे शिकायत ख़ुतूत में क़ासिद ख़मोश रहना वो मा'नी-शनास हैं