है जिस के दिल में ख़ुदा की दहशत उसे कहाँ है क़ज़ा की दहशत मिरे चराग़ों में हौसला है डराएगी क्या हवा की दहशत वो ज़ाबता कोई ज़ाबता है छुपी हो जिस में अना की दहशत हम हक़ को अपने ज़रूर लेंगे नहीं है तेरी सज़ा की दहशत क़दम क़दम तुम सँभल के चलना है इस नगर में बला की दहशत अज़ाब जैसा है ज़र्द मौसम गुलों में फिर है फ़ना की दहशत छुपाए फिरते हैं मुँह अंधेरे है उन में कितनी ज़िया की दहशत ख़मोश अब भी हैं मेरे दुश्मन है उन पे तारी सदा की दहशत यज़ीदियों के दिलों में 'शादाँ' है आज भी कर्बला की दहशत