हज़ार रंग जलाल-ओ-जमाल के देखे वो मारके तिरे हुस्न-ए-ख़याल के देखे समझ में आने लगा मक़्सद-ए-हयात-ओ-ममात वो ज़ाविए तिरे हिज्र ओ विसाल के देखे हर एक ग़म है तर-ओ-ताज़ा पहले दिन की तरह अमानतें कोई यूँ भी सँभाल के देखे फ़ज़ा न बुझने लगे इस ख़याल से अक्सर दिल ओ निगाह के रस्ते उजाल के देखे नगर भी और खंडर भी नज़र में रहते हैं अजीब दौर उरूज-ओ-ज़वाल के देखे कि रश्क आने लगा अपनी बे-कमाली पर कमाल ऐसे भी अहल-ए-कमाल के देखे न चश्म इशारे से वाक़िफ़ न लब का हर्फ़ से रब्त कुछ ऐसे सिलसिले भी क़ील-ओ-क़ाल के देखे ज़मीं ज़मीं न रही और फ़लक फ़लक न रहा कुछ ऐसे मरहले भी अर्ज़-ए-हाल के देखे कोई सदी भी है पल और कोई पल भी सदी कुछ ऐसे फ़ासले भी माह-ओ-साल के देखे हुई ज़मीन कभी राख तो कभी ग़र्क़ाब कुछ ऐसे हौसले भी बर्शगाल के देखे अजीब शर्त है इन मंज़रों की ऐ 'रूही' कि अपनी आँखें कोई ख़ुद निकाल के देखे