हम सोज़-ए-दिल बयाँ करें तुम से कहाँ तलक जलने लगी है अब तो हमारी ज़बाँ तलक कुछ बे-कसी-ए-राह-रौ-ए-ग़म न पूछिए मिलती नहीं है गर्द-ए-रह-ए-कारवाँ तलक शर्मा के लौट आए न जब कुछ असर हुआ नाले हमारे पहुँचे तो थे आसमाँ तलक उम्मीद-ए-बादा किस को है ख़ून-ए-जिगर पियो है मोहतसिब के रूप में पीर-ए-मुग़ाँ तलक राज़-ओ-नियाज़-ए-इश्क़ की क्या हो ख़बर हमें हासिल नहीं है दीद-ए-रुख़-ए-महवशाँ तलक किस मुँह से हम बयान करें माजरा-ए-दिल उन को नहीं पसंद है सोज़-ए-निहाँ तलक हम को क़फ़स ही रास हुआ बर्क़ के तुफ़ैल बाक़ी नहीं चमन में रहा आशियाँ तलक पा-ए-ज़ईफ़ बअ'द में चाहें तो टूट जाएँ पहुँचा दें एक बार तो कू-ए-बुताँ तलक शायद बक़ा-ए-इश्क़ इसी शय को कहते हैं हम भूल बैठे ग़म में ज़मान-ओ-मकाँ तलक यारो हमारी ज़ीस्त का क़िस्सा है मुख़्तसर महदूद है हदीस-ए-ग़म-ए-दिल-बराँ तलक मुतलक़ नहीं है 'कैफ़' को दावा-ए-जज़्ब-ए-दिल मक़्दूर इस का गिर्या-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ तलक