हमारा ज़िक्र किसी की ज़बाँ तक आ गया था वो नफ़ा छोड़ के आख़िर ज़ियाँ तक आ गया था दुआ के साथ में अश्कों के हार भेजता था कि सब्र टूट के आह-ओ-फ़ुग़ाँ तक आ गया था हमारे दिल से परी-ज़ाद पीटते निकले कि वो जो अस्ल मकीं था मकाँ तक आ गया था हमारे पास सुहूलत थी शे'र कहने की सो ज़ख़्म सूख के जल्दी निशाँ तक आ गया था अब इस से बढ़ कर उसे और क्या ख़सारा हो यक़ीन टूट के वापस गुमाँ तक आ गया था