हम-मर्तबा न समझो रुत्बा मिरा तो जानो शान-ए-ज़मन रहो तुम मुझ को गदा तो जानो यूँ तो निकाल देगा संदल-बदन का कस-बल बोसे की कर दे ख़्वाहिश पूरी मुआ तो जानो अब से भी सीख लो तुम पाँव ज़मीं पे धरना काग़ज़ क़लम उठाया तुम पर लिखा तो जानो शीशे पे पा-बरहना चलना नहीं है आसाँ किर्चें चुभें तो जानो तलवा छिला तो जानो मूए ने मुँह की खाई फिर भी ये ज़ोर ज़ोरी ये रेख़्ती है भाई तुम रेख़्ता तो जानो ग़ाज़ी-मियाँ हैं छोटे लेकिन बड़ी सी दुम है ये दुम फँसी तो जानो कुछ भी हुआ तो जानो कहते हैं 'क़ासमी' भी बचपन का है चटोरा हत्थे चढ़ेगी जब भी वो दिलरुबा तो जानो