हर इक मुसाफ़िर की आस्था को बचा लिया है ख़ुदा ने तूफ़ाँ से नाख़ुदा को बचा लिया है तिरे अकड़ते ही झुक के मिलने से रुक गया मैं तिरी अना ने मिरी अना को बचा लिया है मिरे पुकारे बिना ही तू ने पलट के जानाँ जो दिल से निकली थी उस सदा को बचा लिया है पलक झपकते ही उस बिचारी का क़त्ल होता नज़र जमा कर तिरी अदा को बचा लिया है ग़ज़ल ने मुद्दत के बाद उतर कर 'नबील' तेरी बनी हुई थी जो उस हवा को बचा लिया है