हवा भी नम सी है बादल भी ज़ार ज़ार सा है तुम्हारी याद में मौसम भी अश्क-बार सा है जबीं को छू कि मयस्सर हो लम्स की ठंडक मिरे मसीहा मुझे रात से बुख़ार सा है हैं मेरी आँखों में बरसात दिल में ज़ख़्म के फूल मिज़ाज अब के ख़िज़ाँ का भी कुछ बहार सा है लो अब तो कर लो मिरा क़ैस-ओ-कोह-कन में शुमार बदन भी चाक है दामन भी तार तार सा है न उस का शेवा न आदत न उस की तर्ज़ न तौर पर उस के वा'दे पे अब भी कुछ ए'तिबार सा है