हिज्र इनआम-ए-वफ़ा हो जैसे

By rafeeq-jabirJuly 7, 2021
हिज्र इनआम-ए-वफ़ा हो जैसे
जुर्म-ए-उल्फ़त की सज़ा हो जैसे
दाग़-ए-दिल आज भी लौ देता है
तेरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा हो जैसे


रहरव-ए-राह-ए-वफ़ा से पूछो
हर-नफ़स कर्ब-ओ-बला हो जैसे
दिल में ये जोश-ए-तरब तो देखो
दर्द भी कोई दवा हो जैसे


यूँ हर इक ख़त को तका करता हूँ
मेरे ही नाम लिखा हो जैसे
ग़ौर से अहल-ए-क़फ़स हाँ सुनना
जरस-ए-गुल की सदा हो जैसे


एक ताइर नज़र आया है अभी
हुदहुद-ए-शहर-ए-सबा हो जैसे
तेशा-ज़न कोई निहाँ था मुझ में
वो भी अब मर सा गया हो जैसे


मेरे अशआ'र वो यूँ पढ़ता है
आइना देख रहा हो जैसे
यूँ हवा चीख़ रही है बन में
दिल उसे ढूँड रहा हो जैसे


ये तिरा 'जाबिर'-ए-शीरीं-गुफ़्तार
ख़ुसरव-ए-शहर-ए-नवा हो जैसे
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