हिज्र-ओ-विसाल के नए मंज़र भी आएँगे आबादियों में आए तो फिर घर भी आएँगे आसाँ नहीं है उतनी तलाश-ए-जहान-ए-नौ ढूँडोगे गर जज़ीरे समुंदर भी आएँगे ऐ वक़्त डर है तेरे ख़ुदाओं को बस यही बे-नंग-ओ-नाम हैं जो बराबर भी आएँगे दुनिया इसी का नाम है हर सम्त ही यहाँ बन कर यक़ीं गुमान के मेहवर भी आएँगे ऐ चश्म-ए-इल्तिफ़ात ये फ़ुट-पाथ ये सड़क हैं मुंतज़िर कि इन पे क़लंदर भी आएँगे मौजों से लड़ने दीजिए कुछ देर वक़्त की जिन में है हौसला वो उभर कर भी आएँगे हैं नक़्श-ए-पा जहाँ जहाँ इंसाँ के, देखना क़दमों में आदमी के वो अम्बर भी आएँगे मायूस यूँ न बहर-ए-अदब हो, तू सब्र कर तुझ को उबूर करने शनावर भी आएँगे नाकाम सी रिफाक़तें ले कर कभी यहाँ दश्त-ए-वफ़ा की सैर को दिलबर भी आएँगे आजिज़ हो अक़्ल देख के सन्नाई जिन की वो हुस्न-ए-जहाँ के नित-नए पैकर भी आएँगे तेरे लिए जो वहम है उन के लिए यक़ीं अक्सर यहाँ गुमान के मेहवर भी आएँगे बदला हुआ मिज़ाज है इस बार वक़्त का लहरों की ज़द में अब के शनावर भी आएँगे बातों से फूल झड़ते थे लेकिन ख़बर न थी इक दिन लबों से उन के ही नश्तर भी आएँगे ढाओगे तुम जो मेहवर-ए-अफ़्कार को तो फिर ये जान लो कि ग़ैब से लश्कर भी आएँगे हम वो ख़ुदा-तरस हैं फ़क़ीरी है जिन की शान यूँही रहे तो दर पे सिकंदर भी आएँगे कब इश्क़ रुक सका है मसाइब से वक़्त के दीवाने ख़ाक-ओ-ख़ूँ में नहा कर भी आएँगे होनी है ख़त्म उन की भी मोहलत यक़ीं रखो ये वक़्त के ख़ुदा तह-ए-ख़ंजर भी आएँगे आफ़ाक़ से परे है मिरा मेहवर-ए-ख़याल है हौसला तो फिर नए शहपर भी आएँगे